Sandeep Sharma

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पुरुष और प्रेम।

पुरुष और प्रेम, निष्ठुर नही है,
यह कोमल भाव कोई स्त्रीत्व सा नही है।।

इसे समझने को ह्रदय विशाल चाहिए,,
जो हो कोमल ह्रदयी तो भूल ही जाइए।।

प्रेम पुरुष का इक सख्त दरख़्त है,
जो देता है फल,पर खाता पत्थर है।।

भावनात्मक वो है,पर दिखाता नही है,,
कोमल है पंखुरी सा,पर रिझाती वो नही है।।

है फूल सा महकता,भंवरे सा उन्मुक्त है,
एहसास न समझता कोई, सो रहता,विमुक्त है।।

पुरुष को बनाया गया सिर्फ देने को ही है,
वो शिकायत न है करता, वो कहने को ही है।।

पुरुष वीरता की ऐसी,अनूठी मिसाल है,
कोमलता करती तभी तो उसको प्यार है।।

प्रेम के पुरुष को तुम  ,न समझोगे जी कभी,,
तुम कहोगे जानती हूं, पर न जानोगे तुम  कभी।।

वो लाकर हर सौगात, झोली मे है  डालता,,
न करता वो लिहाज, किस किस से वास्ता।।

वाकिफ वो नावाकिफ वो,कुछ भी नही जानता,
परिवार की खातिर, वो अहम है सालता।।

इक छांव की खातिर, जब वो बेल कोई  भालता,,
पाकर  उलाहना ,वो निकल है भागता।।

पुरुष  प्रेम की ऐसी ,ऊंची ऊंचाई है,

जिसकी नाप अब तलक ,
न कोई  नाप पाई है।।


वो भाई,पिता पति,तो बहुत बाद है,
करते हो याद तुम, जब वो नही छांव है।।

वो रक्षा की ऐसी मजबूत ढाल है,
जो सहता सभी का ,हर प्रहार है।।

पुरुष और प्रेम,  जी रहने ही तुम  दो,,
यदि ह्रदय भी कोमल ,
तो भी ,
समझोगे भी न तुम  तो।।

उसके प्रेम के कोई  दिखावे नही है,
आते उसके हिस्से पछतावे ही तो है।।

वो सहानुभूति का है तकिया जो कभी मांगता,
दिया जाता है पत्थर, जिसे वो है थामता।।

बेरहम, पत्थर ह्रदयी,तगमे वो संभालता,
बस इक नारी के आगे ही,देखा वो हारता।।

वो तब भी देता छांव, ऐसा बादल वो है,
ढक देता सूरज को, जब देखता संकट वो तो।।
तुम्हे कहा न छोडिए, तुम न जान पाओगे,
पुरुष और प्रेम, तुम न समझ पाओगे।।
####
संदीप शर्मा।।

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3 Comments

Sachin dev

07-Apr-2023 06:20 PM

Nice

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Gunjan Kamal

07-Apr-2023 02:56 PM

👌

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लाजवाब

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